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ISR PITH

जीवन में श्रीवैष्णव दीक्षा की आवश्यकता

श्रीवैष्णव संप्रदाय में दीक्षा, (समाश्रयनम्) केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक पुनर्जन्म है, जो भक्त को भगवान श्रीमन् नारायण और श्रीरामानुजाचार्य की दिव्य परंपरा से जोड़ता है। यह मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने का द्वार और एक सार्थक, धर्मपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर होने का मार्ग है। यह पवित्र दीक्षा आत्मा को शुद्ध करती है, दिव्य ज्ञान प्रदान करती है, और भक्ति, विनम्रता एवं सेवा से युक्त जीवन जीने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन देती 

भगवान के चरणों में पूर्ण समर्पण – श्रीवैष्णव धर्म की आधारशिला

श्रीवैष्णव परंपरा में प्रपत्ति (पूर्ण समर्पण) को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च साधन माना गया है। पवित्र शास्त्रों में बार-बार इस बात पर बल दिया गया है कि भक्त को एक गुरु के चरणों में समर्पित होना चाहिए, जो दिव्य ज्ञान प्रदान करते हैं और शिष्य को पंच संस्कार (पांच प्रकार की पवित्र दीक्षा) द्वारा शुद्ध करते हैं।

                                                                     सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
                                                                      अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥(भगवद गीता 18.66)

अर्थ: “सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा और मोक्ष प्रदान करूंगा—चिंता मत करो।”

यह श्लोक स्पष्ट करता है कि उचित दीक्षा के माध्यम से नारायण में पूर्ण समर्पण ही मोक्ष प्राप्ति और उनके शाश्वत सेवा का एकमात्र मार्ग है।  

गुरु (आचार्य) आध्यात्मिक उत्थान के लिए एक दिव्य मार्गदर्शक

गुरु या आचार्य के मार्गदर्शन के बिना, कोई भी वास्तव में श्रीवैष्णव परंपरा की गहराई को नहीं समझ सकता या इसे सही तरीके से अपना नहीं सकता। आचार्य शिष्य को  मंत्र  प्रदान करते हैं, उन्हें श्रीवैष्णव परंपरा से जोड़ते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वे धर्म के मार्ग पर बने रहें।

                                                                                        तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्।
                                                                                        समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्॥(मुण्डक उपनिषद् 1.2.12)

अर्थ: “परम सत्य को समझने के लिए, व्यक्ति को ऐसे गुरु के पास जाना चाहिए जो शास्त्रों में पारंगत हो और  ब्रह्म में पूर्ण रूप से स्थापित हो।”

श्रीवैष्णव दीक्षा को ग्रहण करके, एक भक्त आचार्य  की कृपा प्राप्त करता है, जिससे उसकी आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित होती है और मोक्ष (परम मुक्ति) प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है

परम लक्ष्य – मोक्ष और भगवान विष्णु की शाश्वत सेवा

श्रीवैष्णव परंपरा सिखाती है कि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष (मुक्ति) है, जिसे नारायण के चरणों में शरणागति और उनकी शाश्वत सेवा के माध्यम से वैकुंठ में प्राप्त किया जाता है। दीक्षा सुनिश्चित करती है कि भक्त भगवान विष्णु की कृपा और आचार्यों के आशीर्वाद को प्राप्त कर उनके दिव्य धाम में स्थान सुरक्षित करें।

 
                                                                                त्वमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
                                                                              तत्प्रसादात् परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्॥ विष्णु पुराण 6.5.47                                                                                                                                           

अर्थ: “केवल भगवान विष्णु की शरण में जाओ। उनकी कृपा से, तुम परम शांति और शाश्वत धाम को प्राप्त करोगे।”

श्रीवैष्णव दीक्षा ग्रहण करके, एक भक्त वैकुंठ की राह को सुरक्षित करता है, जहाँ वह श्रीमान नारायण की शाश्वत सेवा और दिव्य आनंद को प्राप्त करता है।

श्रीवैष्णव दीक्षा उन लोगों के लिए अत्यंत आवश्यक है जो मोक्ष, आध्यात्मिक शुद्धता और दिव्य संपर्क की खोज में हैं। यह भगवान नारायण का आशीर्वाद, आचार्य का मार्गदर्शन और पंच संस्कार के माध्यम से जीवन का आध्यात्मिक रूपांतरण प्रदान करती है। बिना इस दीक्षा के, प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधा रहता है। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु  कृपा (आचार्य कृपा) के माध्यम से भगवान लक्ष्मी नारायण  की शरणागति ही वैकुंठ में शाश्वत आनंद और दिव्य सेवा प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है।

                                              “आइए, इस पवित्र मार्ग को अपनाएँ और श्रीमन्  नारायण के चरण कमल में पूर्ण समर्पण करें!”

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